सरकारी नीतियां

वैज्ञानिकों ने सतत कृषि के भविष्य पर किया विचार-विमर्श

डॉ. यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी द्वारा सतत खाद्य प्रणालियों को सक्षम बनाने के उद्देश्य से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में प्राकृतिक खेती और कृषि पारिस्थितिकी प्रथाओं पर विभिन्न सत्रों का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन राष्ट्रीय कृषि, खाद्य और पर्यावरण अनुसंधान संस्थान (आईएनआरएई), फ्रांस और भारतीय पारिस्थितिकी सोसायटी, हिमाचल प्रदेश चैप्टर के सहयोग से आयोजित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य सतत कृषि और प्राकृतिक खेती के विकास को गति देना था।

सम्मेलन के दौरान ‘कृषि पारिस्थितिकी पहल: वैश्विक और भारतीय परिप्रेक्ष्य’ विषय पर एक विशेष सत्र आयोजित हुआ। इस सत्र में फ्रांस के लिसिस लैब की उप निदेशक, प्रोफेसर एलिसन लोकोन्टो ने सतत खाद्य प्रणाली में सामाजिक नवाचारों के महत्व को विस्तार से बताया और हितधारकों को वृद्धिशील परिवर्तन अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। आंध्र प्रदेश से डॉ. डी.वी. रायडू ने आंध्र प्रदेश समुदाय-प्रबंधित प्राकृतिक खेती मॉडल पर चर्चा की, जिसमें खाद्य वन मॉडल के माध्यम से कीट प्रबंधन और लागत में कमी जैसे पहलुओं को रेखांकित किया गया।

नाबार्ड के डीजीएम, डॉ. सोहन प्रेमी ने बैंक के जनजातीय विकास कार्यक्रम की सफलता की चर्चा करते हुए बताया कि इस पहल से प्रवासन दर में 64% से 25% की गिरावट आई है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हुई है। नौणी विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने हिमाचल प्रदेश में वैकल्पिक कृषि प्रणालियों की आवश्यकता पर बल दिया और CETARA प्रमाणन प्रणाली के माध्यम से प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के प्रोत्साहन की वकालत की।

सत्र में विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा जलवायु लचीलापन, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और सूक्ष्मजीव आधारित समाधानों पर गहन चर्चा की गई। बेलग्रेड विश्वविद्यालय की डॉ. इविका डिमकिक ने किसानों की जरूरतों के अनुरूप स्मार्ट जैव उर्वरकों और माइक्रोबियल समाधानों के महत्व पर प्रकाश डाला। उज़्बेकिस्तान की डॉ. दिलफ़ुज़ा जाब्बोरोवा ने सूखा सहनशीलता बढ़ाने के लिए बायोचार और एएमएफ के संयुक्त उपयोग पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

सम्मेलन में प्राकृतिक खेती, वैदिक कृषि सिद्धांतों और हिमाचल प्रदेश में टिकाऊ सेब की खेती पर भी विचार-विमर्श किया गया। सम्मेलन ने सतत कृषि के लिए नवीन दृष्टिकोणों की खोज की और भविष्य की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्राकृतिक खेती की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।

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