डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के सब्जी विज्ञान विभाग द्वारा विकसित दो प्रमुख सब्जी किस्मों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी गुणवत्ता और प्रदर्शन का लोहा मनवाया है। इन किस्मों में शीतोष्ण गाजर की किस्म ‘सोलन श्रेष्ठ’ और फ्रेंच बीन की किस्म ‘लक्ष्मी’ शामिल हैं, जिन्हें हाल ही में नई दिल्ली में केंद्रीय किस्म विमोचन समिति (सीवीआरसी) द्वारा आधिकारिक मान्यता प्रदान की गई।
किस्मों का परिचय और विशेषताएँ
सोलन श्रेष्ठ (गाजर)
- आकर्षक जड़ें: सोलन श्रेष्ठ लंबी, नारंगी रंग की बेलनाकार जड़ों के लिए जानी जाती है, जो अत्यंत मुलायम और बिना बालों वाली होती हैं।
- उत्पादकता: यह किस्म 255-265 ग्राम वजन की औसत जड़ों के साथ 225-275 क्विंटल प्रति हेक्टेयर विपणन योग्य उपज देती है।
- पोषण और रोग प्रतिरोधक क्षमता: इसमें β-कैरोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, और यह सामान्य बीमारियों व कीटों के प्रति प्रतिरोधी है।
लक्ष्मी (फ्रेंच बीन)
- उत्कृष्ट फली: यह किस्म 2-3 फलियों वाले नोड्स के साथ आकर्षक, बिना डोरी वाली हरी फलियां पैदा करती है।
- उत्पादकता और परिपक्वता: 65-70 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की विपणन योग्य उपज प्रदान करती है।
- बीज का गुण: इसके परिपक्व बीज सफेद रंग के हल्के पीले पट्टों के साथ होते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता
इन किस्मों का प्रदर्शन अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRP) के तहत कई वर्षों तक किया गया, जहां इनके उत्कृष्ट परिणाम सामने आए। इन्हें ज़ोन I और IV में खेती के लिए अनुशंसित किया गया है, जिसमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, बिहार और झारखंड जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
डॉ. रमेश कुमार भारद्वाज और उनकी टीम ने इन किस्मों की उत्कृष्टता सुनिश्चित करने के लिए गहन शोध और परीक्षण किया। अनुसंधान निदेशक, डॉ. संजीव चौहान ने गाजर की इस किस्म के पोषण और उत्पादन क्षमता को किसानों के लिए लाभदायक बताया।
किसानों के लिए आर्थिक लाभ
इन किस्मों की सबसे बड़ी विशेषता है कि ये खुले में परागण से विकसित होती हैं, जिससे ये किसानों के लिए सस्ती और अधिक सुलभ हैं। कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने विश्वास व्यक्त किया कि ये किस्में छोटे और सीमांत किसानों की आय में वृद्धि करने के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और अन्य राज्यों की कृषि अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ बनाएंगी।
निष्कर्ष
‘सोलन श्रेष्ठ’ और ‘लक्ष्मी’ जैसी किस्मों की सफलता भारतीय कृषि के लिए एक प्रेरणा है। इनका उपयोग किसानों के उत्पादन में वृद्धि और लागत में कमी के लिए एक कुशल विकल्प के रूप में किया जा सकता है।