डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने बुधवार को प्रख्यात तमिल कवि, लेखक, पत्रकार, और स्वतंत्रता सेनानी सुब्रमण्यम भारती की जयंती के अवसर पर भारतीय भाषा दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया। इस विशेष अवसर पर विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्यालयों और कार्यक्रमों में केवल हिंदी भाषा का उपयोग किया गया, जो भाषाई एकता को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारतीय भाषा उत्सव की मुख्य गतिविधियां
भारतीय भाषा दिवस के उपलक्ष्य में विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग और स्पेस क्लब (सतर्क, सुरक्षित एवं संरक्षित पर्यावरण संघ) द्वारा 60 छात्रों की भागीदारी के साथ एक विशेष आयोजन किया गया। यह आयोजन तीन मुख्य परिकल्पनाओं पर आधारित था:
- हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं का प्रोत्साहन:
स्पेस क्लब के सदस्यों ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों और विभागाध्यक्षों से उनके कार्यालय कार्यों में हिंदी और स्थानीय भाषाओं के उपयोग का निवेदन किया। यह पहल विश्वविद्यालय परिसर में भाषाई जागरूकता बढ़ाने का प्रयास था। - संगोष्ठी और भाषाई समन्वय पर चर्चा:
पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. सतीश भारद्वाज ने “भाषाओं के माध्यम से एकता” विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी क्षेत्रीय भाषाएं न केवल हमारी संस्कृति की पहचान हैं, बल्कि यह प्रकृति और समाज के साथ हमारे रिश्ते को भी सुदृढ़ करती हैं। उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं और पर्यावरणीय विविधता के बीच के तालमेल को समझाने का प्रयास किया। संगोष्ठी में छात्रों ने अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में प्रश्न पूछे और उत्तर दिए, जिससे भाषाई समृद्धि का अनुभव हुआ। - परंपरागत माध्यमों का उपयोग:
छात्रों ने स्थानीय भाषाओं में अपने परिवार और दोस्तों को 35 पोस्टकार्ड भेजकर संदेशों का आदान-प्रदान किया। यह गतिविधि पुराने तरीके से संवाद स्थापित करने और क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व को समझाने का प्रयास था।
कुलपति का समर्थन और राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रासंगिकता
स्पेस क्लब के छात्रों ने कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल से अनुरोध किया कि इस आयोजन के प्रारूप को विश्वविद्यालय के अन्य विभागों तक विस्तारित किया जाए। प्रो. चंदेल ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत शिक्षा और अनुसंधान में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने का विशेष प्रावधान है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रोत्साहन से विश्वविद्यालय को किसानों और ग्रामीण समुदायों के साथ बेहतर सामंजस्य स्थापित करने में मदद मिलेगी।
निष्कर्ष
भारतीय भाषा दिवस का यह आयोजन केवल भाषाई एकता का उत्सव नहीं था, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने का एक प्रयास भी था। क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण और उनके दैनिक जीवन में उपयोग को बढ़ावा देना हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।