भारत सरकार द्वारा हाल ही में शुरू किए गए राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (National Natural Farming Mission) के तहत, डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी को सात प्रमुख प्राकृतिक कृषि केंद्रों में से एक के रूप में चुना गया है। रु. 2481 करोड़ के बजट वाले इस मिशन को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दी गई थी। इसका उद्देश्य प्राकृतिक खेती को मिशन-मोड दृष्टिकोण से बढ़ावा देना है।
नौणी विश्वविद्यालय की भूमिका
इस प्रतिष्ठित सूची में नौणी विश्वविद्यालय के साथ-साथ गुरुकुल, कुरुक्षेत्र; यूएएस धारवाड़; गुजरात प्राकृतिक खेती विज्ञान विश्वविद्यालय; तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय; रायथु साधिकारा संस्था, आंध्र प्रदेश; और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची को भी शामिल किया गया है। नौणी विवि का चयन इस क्षेत्र में उसके लंबे समय से चल रहे शोध और प्रयासों का प्रमाण है।
विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने मिशन के लिए चुने जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय कृषि मंत्री का आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा, “यह मिशन हमारे विश्वविद्यालय की वर्षों की मेहनत का सम्मान है। हमने प्राकृतिक खेती में वैज्ञानिक अनुसंधान और विस्तार गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभाई है।”
हिमाचल प्रदेश को मिलेगा लाभ
इस मिशन के तहत, हिमाचल प्रदेश के 1.7 लाख से अधिक किसान, जो पहले से ही प्राकृतिक खेती को अपनाए हुए हैं, को बड़े पैमाने पर लाभ होगा। हिमाचल सरकार ने प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों से 40 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूं और 30 रुपये प्रति किलोग्राम मक्का खरीदने की पहल की है, जो देश में पहली बार है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी
नौणी विश्वविद्यालय ने कृषि पारिस्थितिकी पर यूरोपीय आयोग द्वारा वित्तपोषित “एक्रोपिक्स” परियोजना के तहत 11 देशों के 15 से अधिक संस्थानों के साथ साझेदारी की है। साथ ही, विश्वविद्यालय ने एनसीईआरटी और कृषि स्नातकों के लिए प्राकृतिक खेती पाठ्यक्रम तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अगला कदम
मिशन के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं विकसित करने हेतु सभी चयनित केंद्रों की पहली बैठक 22-23 दिसंबर को हैदराबाद में आयोजित होगी।