डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने हिमाचल प्रदेश में सूखे की गंभीर स्थिति के मद्देनजर किसानों को फसल प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण सलाह जारी की है।
प्रदेश में शुष्क मौसम का प्रभाव
हिमाचल प्रदेश में पिछले आठ वर्षों में (2016 के बाद) अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के महीने सबसे शुष्क साबित हुए हैं। सोलन जिले में अक्टूबर और नवंबर में वर्षा की भारी कमी देखी गई।
- सितंबर में सबसे हालिया बारिश हुई, लेकिन यह सामान्य से काफी कम थी।
- मिट्टी में नमी की भारी कमी के चलते कृषि गतिविधियां बाधित हो रही हैं।
- मौसम संबंधी आंकड़ों (1971-2020) के अनुसार, मानसून के बाद अक्टूबर और नवंबर में सामान्यतः बहुत कम वर्षा होती है।
रबी फसलों पर प्रभाव
सूखे का सीधा असर रबी सीजन की सब्जियों और फलों की फसलों पर पड़ रहा है।
- सब्जियां: पत्ता गोभी, फूलगोभी, मटर, प्याज, लहसुन जैसी फसलों के विकास में कमी।
- फल: फलों के पौधों की जड़ें कमजोर हो रही हैं, जिससे रोगों की संभावना बढ़ रही है।
किसानों के लिए सुझाव
- एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाएं
- मोनो-क्रॉपिंग से बचें और फलों की खेती, पशुधन को शामिल करते हुए बहु-उद्यम खेती करें।
- कृषि वानिकी मॉडल अपनाएं
- फल-आधारित कृषि वानिकी मॉडल सूखे के प्रति लचीलापन बढ़ाने में मदद करेंगे।
- सूखा-सहिष्णु किस्में चुनें
- गेहूं की देर से बोई जाने वाली किस्में जैसे HPW-155 और HPW-368 का चयन करें।
- क्राउन रूट इनिशिएशन चरण में जीवन रक्षक सिंचाई प्रदान करें।
- प्याज की रोपाई में देरी करें
- प्याज की रोपाई दिसंबर के अंत तक टालें।
- जल-कुशल सब्जियां लगाएं
- मूली, शलजम, पालक और चुकंदर जैसी फसलें उगाएं।
- मल्चिंग और जल संरक्षण तकनीक अपनाएं
- नमी संरक्षण के लिए पौधों के चारों ओर सूखी घास (5-10 सेमी मोटी) बिछाएं।
- एंटी-ट्रांसपिरेंट्स का उपयोग करें
- बड़े खेतों में पानी की कमी रोकने के लिए Kaolin (5 किग्रा/100 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर) का उपयोग करें।
- नए वृक्षारोपण से बचें
- पर्याप्त वर्षा होने तक नए फलों के पौधे न लगाएं।
- प्राकृतिक खेती पर जोर दें
- जीवामृत और अच्छाधन (मल्चिंग) का उपयोग करें।
- मौसम की जानकारी से अपडेट रहें
- मेघदूत ऐप डाउनलोड करें और मौसम आधारित कृषि सलाहकार सेवाओं का उपयोग करें।
निष्कर्ष
इन उपायों को अपनाकर किसान सूखे की चुनौतियों से निपट सकते हैं और अपनी फसलों की उत्पादकता को बनाए रख सकते हैं। नियमित सिंचाई, जल संरक्षण तकनीक और सूखा-सहिष्णु किस्मों का चयन सूखे के प्रभाव को कम करने में सहायक होंगे।